ओशो राजा (राकेश पांडेय) का जीवन परिचय (Osho raja foundation Harda)

25 दिसंबर 1974 को जन्मे मध्यप्रदेश के इटारसी (कस्बे) में राकेश पांडेय का पालन पोषण एक मध्यम वर्गीय साधारण परिवार में हुआ, इनकी माता ग्रहणी, पिता पुलिस विभाग में हवलदार थे. सरल चित्य, मनमौजी स्वाभाव एवं चेहरा ओज से परिपूर्ण होने के कारण इनका व्यक्तित्व प्रभावशाली है, संघर्षपूर्ण जीवन इसलिए क्योंकि छह बहिनो के इकलौते भ्राता, पढाई लिखे में अधिक रूचि न होने के कारण जैसे-तैसे एम,ए किया और विराम दिया.

पूर्व जन्मो की साधना और इस जन्म की निष्ठापूर्ण बैठक के साथ गहरा ध्यान इन्हे समाधी तक लेकर गया, फलस्वरूप परमात्मा प्रसाद के रूप में इन्हे सिद्धि मिली तथा ज्योतिष – (किसी भी व्यक्ति का प्रारब्ध पढ़ना इनके बाए हाथ का काम है) जिसके कारण दूर दूर से लोगों का हरदा आगमन होता रहता है. अगर मध्यप्रदेश या आस पास को हम छोड़ भी दें तो गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश से दर्जनों की तादाद में लोग परामर्श हेतु मिलने बराबर आ रहे है. इसके अलावा ओशो राजा, दोहे, ग़ज़ल, शेर औ शायरी, संगीत-गायन, तंत्र, भक्ति, आयुर्वेद से भी परिपूर्ण है, यह सब कुछ इन्हे अस्तित्व से सिद्धि के रूप प्राप्त हुआ है.

इनकी उम्र कम होने के बावजूद लोग इन्हे “गुरुदेव” संबोधन से पुकारते है यही इनके सम्मान का परिचायक है. बचपन का नाम ‘राजा’ था, परमदृष्टा ओशो (रजनीश) इनके गुरु है इसी कारण से ओशो जगत में इनका एक और नाम “ओशोराजा” पड़ गया, ओशो ने अपने प्रवचनों में ध्यान के रहस्य उजागर किये जिससे सारी दुनिया परिचित है.

राइट ब्रेन खुला होने के कारण उन रहस्यों को इन्होने काव्य में पिरोया है. जैसे दोहे, गीत, (कविता) ग़ज़ल आदि और यही काबिलियत इन्हे कवी या शायर से हटकर अलग ही स्थान पर बैठाती है. अस्तित्व और अपने गुरु आचार्य ओशो रजनीश के आशीर्वाद से ओशो राजा हर क्षेत्र में पारंगत है. जब की उनका पहले से इन क्षेत्रों में कोई अनुभव या किसी भी तरह की कोई शिक्षा नहीं थी न उन्होंने कभी इन क्षेत्रों में कुछ सिखने का प्रयास किया बस जब ईश्वर, अस्तित्व, ओशो रजनीश की देशना हुई, मार्गदर्शन हुआ तभी से ओशो राजा पर इन सभी कलाओं की बौछार होने लगी.

ओशो की भाषा में इन्हे हम ऋषि कहेंगे, वर्तमान में इनके द्वारा लिखा या उतरा समस्त काव्य अध्यात्म और रहसयवाद से परिपूर्ण है. हाल ही में हार्वर्ड वर्ल्ड रिकॉर्ड से ओशो राजा को सम्मानित भी किया गया है. 2011 से अपनी निवास स्थली हरदा (म.प्र) में लोगों को ध्यान की शिक्षा के लिए कटिबद्ध है. ध्यान केंद्र का सञ्चालन इनके सानिध्य में पिछले कई वर्षों से फल फूल रहा है. इनके स्वयं के तादाद में तपस्वी है. कुछ ने तो रहस्य के जगत में भी प्रवेश पा लिया है. यह क्रम निरंतर जारी है.

ओशोराजा, ओशो जगत में सर्वथा एक नया नाम है, बहुत कम ओशो सन्यासी इनसे परिचित है कारण यह है की उज्जैन (आश्रम) और घाटकोपर (विट्ठल स्वामी) मुंबई को छोड़ दें, तो ये कहीं गए ही नहीं हरदा ही रहे अभी तक. मई 2012 में जैसे ही अस्तित्व ने उपहार स्वरुप इनको काव्य से नवाजा यानी गीतों का उतरना शुरू हुआ, वैसे ही आश्चर्य से साथियों के कान खड़े हुए. खुद इनके लिए भी मामला अचंभित था.

इनकी पुराणी पीडियों में दूर-दूर तक कहीं भी लेखन, ज्योतिष, आयुर्वेद, भक्ति, तंत्र इनका जिक्र नहीं है. और न ही कभी इन्होने इन क्षेत्रों में कुछ सिखने का प्रयास किया, यहां तक की पढाई में भी रूचि नहीं थी. इसलिए यह सभी के लिए चौकाने वाला, आश्चर्य से भरा दृश्य रहा. इनकी इन्ही कलाओ से और इस तरह आध्यात्मिक गुरु बन जाने से आज भी लोग हैरान है, कुछ को तो भरोसा ही नहीं होता है. खैर ये वो संसार है जहां जीवित गुरुओ (जो की ईश्वर ही होते है) उनको नहीं पूजा जाता, न राम की सुनी, न कृष्णा की सुनी, न मंसूर की सुनी, न ओशो रजनीश की सुनी, न जीसस की सुनी यह सब जब देह त्याग कर गए तब फिर लोग पछताए. ऐसे ही आज लोग राकेश पांडेय का ओशो राजा हो जाने से बड़े भयभीत और अचंभित नजर आते है.

2015 तक रजिस्टरों और कापियों में इनसे उतरे काव्य को लिखा गया, जिसका इस्तेमाल साल में दो बार ही काव्यपाठ या गायन के रूप में होता था. 2016 के मध्य इनसे उतरे काव्य को तरसने का काम शुरू हुआ, इसे क्रमबद्ध सजाके संगीत में पिरोया गया. फलस्वरूप “रूहानी भजन संध्या” का जन्म हुआ. हरदा में इसका सफलता पूर्वक आयोजन होता आ रहा है.

ओशोराजा कोई पेशेवर गायक नहीं है ,न ही इन्होने कभी संगीत या गायन की कोई शिक्षा ली है. इनसे जुड़े हुए हम सभी सन्यासी प्रेम से इन्हे गुरुदेव पुकारते है और सम्मान देते है हिंदी साहित्य की अनेक विधाओं में इनको दक्षता हासिल है जैसे भजन, कीर्तन, आरती, वंदना, दोहे, गीत, गरबा, मुक्तक, कब्बाली एवं ग़ज़ल.

भारतीय जनमानस के सबसे लोकप्रिय ग्रन्थ तुलसीकृत रामचरित मानस में 1074 दोहे वर्णित है. वर्तमान में इनके द्वारा लिखित दोहों की संख्या 1111 है जो की ओशो के नाम के साथ, ओशो देशना से आपूरित है. यह अपने आप में एक वर्ल्ड रिकॉर्ड है भविष्य में यह संख्या 2000 से पार होने वाली है.