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Harvard World Records Holder in Osho Couplets (dohe)

ओशोराजा, ओशो जगत में सर्वथा नया नाम है, बहुत कम ओशो सन्यासी इनसे परिचित है. भारतीय जनमानस के सबसे लोकप्रिय ग्रन्थ तुलसीकृत रामचरित मानस में 1074 दोहे वर्णित है. वर्तमान में ओशो राजा द्वारा लिखे गए दोहो की संख्या 1111 है जो ओशो के नाम के साथ, ओशो देशना से आपूरित है. यह अपने आप में वर्ल्ड रिकॉर्ड है. हाल ही में ओशो राजा को हार्वर्ड वर्ल्ड रिकॉर्ड लंदन के द्वारा पुरुस्कृत किया गया और सर्टिफिकेट भी दिया गया.

ओशो राजा फाउंडेशन हरदा, मध्य प्रदेश

ओशो राजा फाउंडेशन की स्थापना 2011 में हुई, अपनी निवास स्थली हरदा (म.प्र) में लोगों को ध्यान की शिक्षा के लिए कटिबद्ध है. ध्यान केंद्र का संचालन इनके सानिध्य में पिछले कई वर्षों से फल फूल रहा है. इनके स्वयं के तादाद में तपस्वी है. कुछ ने तो रहस्य के जगत में प्रवेश पा भी लिया है. यह क्रम निरंतर जारी है. गुरदेव चाहते है की यह क्रम सिर्फ हरदा में ही न सिमित रहकर आगे भी बढ़ता रहा है ताकि मनुष्य अपनी देह, तन, मन का असली सुख भोग सके और आनंदमय जीवन जी सके.

बीते वक्त से ही ओशो राजा से मिलने दूर दूर से लोगो का हरदा आगमन जारी है और चलता आ रहा है. अगर मध्य प्रदेश या आसपास को हम छोड़ भी दें तो गुजरात, महाराष्ट्र उत्तरप्रदेश से दर्जनों की तादाद में लोग परामर्श हेतु मिलने बराबर आ रहे है. इनकी उम्र कम होने के बावजूद लोग इन्हे “गुरदेव” सम्बोधन से पुकारते है यही इनके सम्मान का परिचायक है.

गुरुदेव ओशो राजा सिखाते है ऐसा ध्यान जो दें तुरंत परिणाम

मई 2012 में अस्तित्व, ईश्वर ने ओशो राजा को काव्य, ध्यान, ज्योतिष, आयुर्वेद —– से नवाजा ऐसा कोई क्षेत्र नहीं छोड़ा जिससे ओशो राजा अपरिचित रहे हो, अस्तित्व ने ओशो राजा को भेंट स्वरुप सिद्धियां दी जिससे वह लोगों को कम समय में ही ध्यान उपलब्ध करवा देते है. अस्तित्व द्वारा गुरदेव ओशो राजा को ऐसी ध्यान विधियां और ध्यान का विज्ञानं प्राप्त हुआ जो की किसी दूसरे गुरु के पास उपलब्ध नहीं है. यही बात गुरदेव ओशो राजा को सबसे अनूठी और अनमोल बनाती है.

ज्योतिष विज्ञानं

गुरदेव ओशो राजा को ईश्वर अस्तित्व से भेंट स्वरुप ज्योतिष के क्षेत्र में ऐसा आशीर्वाद प्राप्त हुआ जिससे की वह तक्षण व्यक्ति विशेष के बारे में पूरी जीवनी, कुंडली भुत भविष्य बता देते है, यहां तक की अस्तित्व की भेंट से वह किसी भी व्यक्ति विशेष के जीवन में होने वाली घटना को गड या बदल सकने की क्षमता भी रखते है. लेकिन गुरदेव इस प्रतिभा का उपयोग सिर्फ ध्यानियों के लिए करते है.

तुरंत ध्यान के अनुभव

गुरदेव को अस्तित्व से भेंट स्वरुप कुछ विशेष ध्यान विधियां और ध्यान विज्ञानं प्राप्त है जिससे वह सामान्य सामाजिक व्यक्ति को भी कम समय में ध्यान के अनुभव प्राप्त करवा देते है. गुरदेव के द्वारा व्यक्ति विशेष को बताई गई विधि ईमानदारी और नियमित रूप से की जाए तो उसे ध्यान का रस और ध्यान में मिलने वाला आनंद, रस मिलने लगता है जिससे की व्यक्ति का जीवन कमल की तरह खिल उठता है.

आयुर्वेद का ज्ञान

एलॉपथी और आधुनिक इलाज पद्धतियां सिर्फ बिमारियों दबाती है जिससे रोग बार बार पलट कर आता है, ऐसे रोगो के लिए गुरदेव आयुर्वेद के कुछ ऐसे उपाय/तरीके से मार्गदर्शन करते है जिनको करके रोगी एक बार में ही रोग से छुटकारा पा लेता है. असाध्य रोग, बीमारियां प्रारब्ध (पिछले जन्म) में किये कर्मो का नतीजा होती है, जो की व्यक्ति को इस जीवन में भोगना पड़ती है, गुरुदेव ऐसे असाध्य रोगो जो की प्रारब्ध के कारण इस वर्तमान जीवन में होती है उसका मार्गदर्शन करते है.

गायन और संगीत

ओशो राजा कोई पेशावर गायक नहीं है, न ही इन्होने संगीत या गायन की कभी कोई शिक्षा ली है. लेकिन इसके बावजूद भी उनका गायन रूहानी होता है, उन पर यह गीत, काव्य, दोहे, संगीत सभी अपने आप उतरते है, जो की अस्तित्व की भेंट है. गुरदेव द्वारा लिखे गए काव्य का इस्तेमाल साल में दो बार ही काव्यपाठ या गायन के रूप में होता है. 2016 के मध्य इनसे उतरे काव्य को तराशने का काम शुरू हुआ, इसे क्रमबद्ध सजाके संगीत में पिरोया गया. फलस्वरूप ओशो रूहानी भजन संध्या का जन्म हुआ. हरदा में इसका सफलता पूर्वक आयोजन होता रहता है. यूट्यूब पर आप गुरुदेव के संगीत को सुन सकते है, यहां पर क्लिक करे ..

शेर औ शायरी, लेखन में भी पारंगत

गुरुदेव पर अस्तित्व की असीम देन हैं, यु मानो की जैसे अस्तित्व, ईश्वर स्वयं अपने आपको ओशो राजा के रूप में अभिव्यक्त कर रहा हो. क्योंकि वह शेर औ शायरी, दोहे, नज्म और ग़ज़ल के क्षेत्र में भी अनूठे है. इस अनूठेपन का लोहा स्वयं Harvard World Record ने भी माना है और गुरुदेव को पुरुस्कृत किया है. ओशो राजा अपने लेखन में रूहानी शेर, दोहे, ग़ज़ल आदि इस अंदाज़ में करते है की ज़रा से होश से भरा व्यक्ति आत्मरत हो जाता है, तन मन ही नहीं बल्कि आत्मा से भी झूम उठता है. गुरुदेव एक-एक शब्द में परमात्मा की कृपा और संसार को इस तरह से अभिव्यक्त करते है जैसे अस्तित्व स्वयं अपने बारे में व्याख्या कर रहा हो, मानव जीवन की कीमत, आनंद, दुःख, भक्ति, ध्यान और प्रेरणा, संसार की लीला इन सभी से पिरोये हुआ उनका लेखन होता है. जैसे शब्दों से अमृत बह रहा हो.

भक्ति योग

भक्ति योग का अर्थ है परमेश्वर से प्रेममयी सेवा के द्वारा  जुड़ना। प्रेम में स्वार्थ नहीं होता है । प्रेम में लोग बलिदान देते हैं । प्रेम में लोग त्याग करते हैं । प्रेम में उपहार उस वस्तु को देते  हैं जो अनमोल हो । अर्थात वह प्रेम जो अनमोल हो, जिसमें स्वार्थ नहीं हो उस निःस्वार्थ सेवा द्वारा परमेश्वर से जुड़ने का नाम भक्ति योग है । पराभक्ति ही भक्तियोग के अन्तर्गत आती है जिसमें मुक्ति को छोड़कर अन्य कोई अभिलाषा नहीं होती। गीता के अनुसार पराभक्ति तत्व ज्ञान की वह पराकाष्ठा  है जिसको प्राप्त होकर और कुछ भी जानना बांकी नहीं रह जाता ।

ध्यान क्यों करे

ध्यान एक वह चाबी है, वह शक्ति है जिससे आम व्यक्ति भी अपने भाग्य का विधाता बन सकता है. इसीलिए ओशो राजा ध्यान पर इतना जोर देते है. सिर्फ गहरे ध्यान के जरिये से आप जीवन में जो चाहते है उसे हासिल कर सकते है. ध्यान में वह ऊर्जा है, वह शक्ति है जिससे आप अपनी इच्छाएं पूरी कर सकते है. ध्यान एक आनंद है, ध्यान एक जीवन है, ध्यान एक कुंजी है.
विद्यार्थी (स्टूडेंट्स) ध्यान के जरिये मन चाहा परिणाम पा सकते है, ध्यान के जरिये आप कम समय में अधिक से अधिक पढाई कर सकते है और चमत्कारी परिणाम पा सकते है. आपने भी यह पढ़ा ही होगा की कैसे स्वयं “गुरदेव ओशो रजनीश” ने बिना पढाई के शिक्षा में उच्तम स्तर प्राप्त किया, बड़ी बड़ी डिग्रीयां हासिल की, इसके अलावा उन्होंने एक दिन में कई किताबे एक साथ पढ़ने की मानवी क्षमता का उदहारण भी दिया है.
अपने कार्य, नौकरी के लिए भी व्यक्ति बेहद परेशान रहता है लेकिन इसकी कुंजी भी ध्यान में है. ध्यान करने वाला मनचाहा कार्य कर सकता है, वह जो चाहे करने में सक्षम हो जाता है. ध्यान एक चमत्कार है जो की ईश्वर अस्तित्व ने मानव को दिया है लेकिन हम सभी इस बारे में पूरी तरह से अनजान है.
ध्यान से आप अपने किचकिच भरे जीवन में आनंद ला सकते है, गृहस्थ होकर भी आनंदमय हो सकते है. ध्यान और कुछ नहीं अपनी क्षमताओं और अपने स्वरुप को जानना है. ईश्वर ने आपको मानवी देह इसलिए नहीं दी है की आप परेशान होये, गुलामी करे, तनाव में रहे, यह मानवी देह सरसुख भोगने के लिए दी है लेकिन हम अनजान होने के कारण महा सुख, महा आनंद, महा जीवन से चूक रहे है.

क्या ध्यान करने से पागल हो जाते है ध्यान नहीं करना चाहिए ?

ऐसी भ्रांतियां जगत में सुनने को मिलती है की ध्यान तो खतरा है, ध्यान करने से व्यक्ति पागल हो जाता है, कहीं हम ध्यान करने से बाबा जैसे तो नहीं बन जायेंगे. यह सब झूठ है क्योंकि ध्यान एक मात्र जीवन है, बल्कि इस जीवन में अगर कुछ पाने योग्य है तो वह है सिर्फ ध्यान, क्योंकि ध्यान से आप सब कुछ कर सकते है, ध्यान ही जीवन है. ध्यान में पागल होना, विक्षिप्त होना ऐसी बाते सभी झूठी है, कहीं कोई व्यक्ति जांबुच्कर पथभ्रष्ट होता हो जांबुच्कर उलटे सीधे कार्य करता हो तो उसमे उसी का दोष होता है इसमें ध्यान का कोई दोष नहीं होता. सही गुरु के मार्गदर्शन में किया गया ध्यान व्यक्ति को मानव से महामानव बनाता है, मानव के शरीर को पर देता है, वो मस्तिष्क देता है जिससे वह सोच से परे सोच सके, वह हृदय देता है जिससे वह परमानन्द को प्राप्त कर लेता है. ध्यान इंसान को भगवान बना देता है. लेकिन सिर्फ एक सही गुरु के मार्गदर्शन में किया हुआ ध्यान ही आपके जीवन में चमत्कार ला सकता है.

आज के समय में नए युवा और वह व्यक्ति जिन्हे ज्यादा ज्ञान नहीं होता और वह ध्यान करने को उत्सुक होते है, वह अक्सर गलत तरीके से ध्यान करना शुरू कर देते है. ऐसा करने से सिरदर्द, बेचैनी और कई तरह की समस्या सामने आने लगती है. ऐसे युवाओ और ध्यान के इच्छुक लोगों को जरुरत है की वह गुरु के मार्गदर्शन में ही ध्यान करे. सीधे आज्ञाचक्र पर ध्यान करना, तीसरा नेत्र खोलने की लालसा लिए हुए त्राटक जैसी क्रिया करना यह सभी सीधे रूप से नहीं की जाती है, नहीं तो हानि कर देती है, इन सबको करने से पहले कुछ तैयारियां होती है जो की करना पड़ती है ताकि आप आज्ञाचक्र, तीसरी आंख की साधना कर सके.

आज की नव युवा पीढ़ी अपने आत्मा को खोती जा रही है, मानव होकर भी जानवर सी होती जा रही है. मानव होना यानी एक असामान्य सम्भावनाओ का द्वार, इस योनि के लिए देवता भी तरसते है. उसी योनि को आज का युवा नशे, बर्बादी, पागलपाल में खर्च कर रहा है और सिवाय दुःख, दर्द के उसके हाथ कुछ नहीं लगता है. जिसके कारण अमानवीय दृश्य (योन शोषण, समलेंगिकता, लड़ाई) देखने को मिलते है, शारीरिक ऊर्जा का दुरुपयोग हो रहा है, चारों तरफ ऐसा वातावरण बन गया है जिसमे युवा पीढ़ी बुरी तरह फंसी हुई है. इन सब का एक ही उपाय है -ध्यान और सिर्फ ध्यान. सभी माता-पिता को अपने बच्चों को लेकर इस बात के प्रति बहुत जागरूक होना होगा.

श्रीमद भगवद गीता में कण-कण में भगवान का वास बताया गया है लेकिन फिर भी इसी धरती पर रह रहा मानव इतना बेचैन और परेशान क्यों है ? क्योंकि वह अपने निज स्वाभाव, निज तल से भटका हुआ है. वह इस पृथ्वी में व्याप्त कण-कण में बेस ईश्वर को महसूस ही नहीं कर पाता, वह इतनी जल्दी और बेहोशी में है की उसे सिवाय अपने मन की इच्छा और सांसारिक दौड़ के अलावा कुछ खबर ही नहीं और मन इसी तरह मानवी देह पर कब्ज़ा करते हुए इसे सोख लेता है, ख़त्म कर देता है. आपको पता हो की इंसान का शरीर बूढ़ा होता है मन कभी बूढ़ा नहीं होता, यानी आप मन के प्रभाव में से जो इच्छा या कार्य करेंगे उसका कोई अंत नहीं है, यह मन आपको गुलाम बनाकर आप ही का अंत कर देता है.